र्ह पुस्तक , चार आर्य सत्र् , (मेरे शुरुआती प्रकाशनों में से एक), 2560 साल पूवय ददर्े गर्े भगवान बुि के पहले उपदेश की द्धशक्षाओं की जााँच-पड़ताल के व्यद्धिगत अनुभव पर आधाररत है। र्ह द्धशक्षा मेरी साधना का केंद्र हबिंदु रही है और बौि द्धभक्षु के रूप में मेरे जीवन में इसका सबसे अद्धधक महत्व रहा है।